सरसों की खेती (Mustard farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है| सरसों की खेती (Mustard farming) हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की एक प्रमुख फसल है| यह प्रमुख तिलहन फसल है| सरसों की खेती (Mustard farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्थाओं में उगाई जा सकती है|
उपयुक्त जलवायु
भारत में सरसों की खेती (Mustard farming) शीत ऋतु में की जाती है| इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है| सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है| अगर इस प्रकार का मोसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं|
बुवाई का समय
सरसों की खेती से अच्छी पैदवार के लिए बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए| जबकि पीली सरसों के लिए 15 सितम्बर से 30 सितम्बर उपयुक्त रहता है|
बीज की मात्रा
सिंचित क्षेत्रो में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए, और असिंचित क्षेत्रों के लिए इसकी मात्रा 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए है| जबकि पीली सरसों के 4 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर करना उपयुक्त रहता है|
बीजोपचार
1. जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को बुवाई के पूर्व फफूंदनाशक वीटावैक्स, कैपटान, साफ, सिक्सर, थिरम, प्रोवेक्स मे से कोई एक 3 से 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे|
2. कीटो से बचाव हेतु ईमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू पी, 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीजदर से उपचरित करें|
3. कीटनाशक उपचार के बाद मे एज़ेटोबॅक्टर तथा फॉस्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनो की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलो बीजो को उपचारित कर बोएँ|
बोने की विधि
सरसों की खेती के लिए बुवाई कतारों में करना अच्छा रहता है| इसके लिए कतार से कतार की दूरी 25 से 35 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखे तथा बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर रखे तथा असिंचित क्षेत्रों में बीज गहराई नमी अनुसार रखे|
सिंचाई प्रबंधन
सरसों की खेती के लिए 4 से 5 सिचांई पर्याप्त होती है| यदि पानी की कमी हो तो चार सिंचाई पहली बुवाई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते समय (बुवाई के 25 से 30 दिन बाद) तीसरी फूल प्रारम्भ होने के समय (45 से 50 दिन) तथा अंतिम सिंचाई फली बनते समय (70 से 80 दिन बाद) की जाती है| यदि पानी उपलब्ध हो तो एक सिंचाई दाना पकते समय बुवाई के 100 से 110 दिन बाद करनी लाभदायक होती है| सिंचाई फव्वारे विधि द्वारा करनी चाहिए|
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