Friday 30 August 2019

Sarson Beej - 9540019555

सरसों की खेती (Mustard farming) की जानकारी जलवायु, किस्में, रोकथाम व पैदावार :-

सरसों की खेती (Mustard farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है| सरसों की खेती (Mustard farming) हरियाणा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र की एक प्रमुख फसल है| यह प्रमुख तिलहन फसल है| सरसों की खेती (Mustard farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्‍थाओं में उगाई जा सकती है|
इसका उत्पादन भारत में आदिकाल से किया जा रहा है| इसकी खेती भारत में लगभग 66.34 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है, जिससे लगभग 75 से 80 लाख उत्पादन मिलता है| सरसों की यदि वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जाए, तो उत्पादक इसकी फसल से अधिकतम उपज प्राप्त कर सकते है| इस लेख में सरसों की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है| सरसों की जैविक उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें - सरसों की जैविक खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं पूरी जानकारी

उपयुक्त जलवायु

भारत में सरसों की खेती (Mustard farming) शीत ऋतु में की जाती है| इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है| सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है| अगर इस प्रकार का मोसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं|
भूमि का चयन
सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती है| लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है| यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है| लेकिन मृदा अम्लीय नही होनी चाहिए|
खेत की तैयारी
किसानों को सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, इसके पश्चात दो से तीन जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के पश्चात सुहागा लगा कर खेत को समतल करना अति आवश्यक हैं| सरसों के लिए मिटटी जितनी भुरभुरी होगी अंकुरण और बढवार उतनी ही अच्छी होगी|

उन्नत किस्में

सरसों की खेती हेतु किस्मों का चयन कृषकों को अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए| कुछ प्रचलित और अधिक उपज वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित क्षेत्र - लक्ष्मी, नरेन्द्र अगेती राई- 4, वरूणा (टी- 59), बसंती (पीली), रोहिणी, माया, उर्वशी, नरेन्द्र स्वर्णा-राई- 8 (पीली), नरेन्द्र राई (एन डी आर- 8501), सौरभ, वसुन्धरा (आरएच- 9304) और अरावली (आरएन- 393) प्रमुख है|
असिंचित क्षेत्र- वैभव, वरूणा (टी – 59), पूसा बोल्ड और आरएच- 30 प्रमुख है|
विलम्ब से बुवाई- आशीर्वाद और वरदान प्रमुख है|
क्षारीय/लवणीय भूमि हेतु- नरेन्द्र राई, सी एस- 52 और सी एस- 54 आदि प्रमुख है| सरसों की खेती के लिए किस्मों की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें - सरसों की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय एवं पैदावार क्षमता
बुवाई का समय
सरसों की खेती से अच्छी पैदवार के लिए बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए| जबकि पीली सरसों के लिए 15 सितम्बर से 30 सितम्बर उपयुक्त रहता है|

बीज की मात्रा
सिंचित क्षेत्रो में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए, और असिंचित क्षेत्रों के लिए इसकी मात्रा 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए है| जबकि पीली सरसों के 4 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर करना उपयुक्त रहता है|

बीजोपचार

1. जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को बुवाई के पूर्व फफूंदनाशक वीटावैक्स, कैपटान, साफ, सिक्सर, थिरम, प्रोवेक्स मे से कोई एक 3 से 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे|
2. कीटो से बचाव हेतु ईमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू पी, 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीजदर से उपचरित करें|
3. कीटनाशक उपचार के बाद मे एज़ेटोबॅक्टर तथा फॉस्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनो की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलो बीजो को उपचारित कर बोएँ|
बोने की विधि
सरसों की खेती के लिए बुवाई कतारों में करना अच्छा रहता है| इसके लिए कतार से कतार की दूरी 25 से 35 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखे तथा बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर रखे तथा असिंचित क्षेत्रों में बीज गहराई नमी अनुसार रखे|

खाद और उर्वरक मात्रा

उर्वरकों का प्रयोग मिट्‌टी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए| सिचित क्षेत्रों मे नत्रजन 120 किलोग्राम, फास्फेट 60 किलोग्राम एवं पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है| फास्फोरस का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है| क्योकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है, यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए तों गंधक की उपलब्धता की सुनिश्चित करने के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहियें| साथ में आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है|
असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिग के रूप में प्रयोग की जानी चाहिए| यदि डी ए पी का प्रयोग किया जाता है, तो इसके साथ बुवाई के समय 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिये लाभदायक होता है तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग बुवाई से पहले करना चाहियें|
सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंड़ो में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे नाई या चोगों से दी जानी चाहिए| नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25 से 30 दिन) के बाद टापड्रेसिंग में डाली जानी चाहिए|

सिंचाई प्रबंधन

सरसों की खेती के लिए 4 से 5 सिचांई पर्याप्त होती है| यदि पानी की कमी हो तो चार सिंचाई पहली बुवाई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते समय (बुवाई के 25 से 30 दिन बाद) तीसरी फूल प्रारम्भ होने के समय (45 से 50 दिन) तथा अंतिम सिंचाई फली बनते समय (70 से 80 दिन बाद) की जाती है| यदि पानी उपलब्ध हो तो एक सिंचाई दाना पकते समय बुवाई के 100 से 110 दिन बाद करनी लाभदायक होती है| सिंचाई फव्वारे विधि द्वारा करनी चाहिए|
खरपतवार नियंत्रण
सरसों के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते है| इनके नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई बुवाई के तीसरे सप्ताह के बाद से नियमित अन्तराल पर 2 से 3 निराई करनी आवश्यक होती हैं| रासयानिक नियंत्रण के लिए अंकुरण पूर्व बुवाई के तुरंत बाद खरपतवारनाशी पेंडीमेथालीन 30 ई सी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए|
भूमि में अच्छी नमी में बुवाई के 48 घंटो में छिड़काव करने से अच्छा लाभ होता हैं| खरपतवारनाशक की कार्य कुश्लता बढ़ाने हेतु छिड़काव करते समय फ्लैट फैन या फल्ड जैट नोज़ल का प्रयोग और साफ पानी का प्रयोग करें| एक ही खरपतवारनाशक हर साल प्रयोग न करें| इससे खरपतवारों में सहनशीलता बनती है| खरपतवार की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- राई-सरसों में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उत्पादन हेतु

प्रमुख कीट

आरा मक्खी- इस कीट की सूड़ियॉ काले स्लेटी रंग की होती है| जो सरसों की खेती में पत्तियों को किनारों से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है, तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है|
चित्रित बग- इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है| शिशु एवं प्रौढ़ पत्तियों, शाखाओं, तनों, फूलों एवं फलियों का रस चूसते है| जिससे प्रभावित पत्तियाँ किनारों से सूख कर गिर जाती है| प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है|
बालदार सुंडी- सुंडी काले एवं नारंगी रंग की होती है और पूरा शरीर बालों से ढका रहता है| सूड़ियाँ प्रारम्भ में झुण्ड में रह कर पत्तियों को खाती है तथा बाद में पूरे खेत में फैल कर पत्तियां खाती है| तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है|
माहूं- इस कीट की शिशु तथा प्रौढ़ पीलापन लिये हुए हरे रंग के होते है| जो पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एव नये फलियों के रस चूसकर कमजोर कर देते है| माहूँ मधुस्राव करते है, जिस पर काली फफूंद उग आती है| जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है|
पत्ती सुरंगक कीट- इस कीट की सुंडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है| जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखायें बन जाती है|
रोकथाम के उपाय
1. सरसों की खेती हेतु गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए|
2. सरसों की खेती में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए|
3. आरा मक्खी की सूड़ियों को प्रातः काल इकठ्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए|
4. प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में पायी जाने वाली बालदार सुंडी की पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
5. प्रारम्भिक अवस्था में माहू से प्रभावित फूलों, फलियों एवं शाखाओं को तोड़कर माहू सहित नष्ट कर देना चाहिए|
6. आरा मक्खी और बालदार सुंडी का प्रकोप यदि आर्थिक स्तर से अधिक हो तो नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत डब्लू पी की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर बुरकाव या मैलाथियान 50 प्रतिशत ई सी की 1.50 लीटर या डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई सी की 500 मिलीलीटर मात्रा या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई सी की 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
7. माहूं चित्रित बग और पत्ती सुरंगक कीट का आर्थिक स्तर से अधिक प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई सी या मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी या क्लोरोपाईरीफास 20 प्रतिशत ई सी की 1.0 लीटर या मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस एल की 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए| एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई सी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग किया जा सकता है|
ध्यान दें- ध्यान रहे रसायन से मधु मक्खी को नुकसान न हो हमेशा दिन में 2 बजे के बाद छिड़काव करें| लेडी बर्ड बीटल रोज दिन में 10 से 15 माहु प्रोढ खाती हैं|

प्रमुख रोग

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा- इस रोग से सरसों की खेती में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते है| जो गोल छल्ले के रूप में पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते है| तीव्र प्रकोप की दशा में धब्बे आपस में मिल जाते है, जिससे पूरी पत्ती झुलस जाती है|
सफेद गेरूई- इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते है| जिससे पत्तियों पीली होकर सूखने लगती है| फूल आने की अवस्था में पुष्पक्रम विकृत हो जाते है| जिससे कोई भी फली नहीं बनती है|
तुलासिता- इस रोग से सरसों की खेती में पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे धब्बे तथा पत्तियों निचली सतह पर इन धब्बों के नीचे सफेद रोयेदार फफूंदी उग आती है| धीरे-धीरे पूरी पत्ती पीली होकर सूख जाती है|
नियंत्रण के उपाय
बीज उपचार
1. सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू एस की 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए|
2. अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए|
भूमि उपचार- भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोडरमा बिरडी 1 प्रतिशत डब्लू पी या ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू पी की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 60 से 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से राई और सरसों के बीज या भूमि जनित आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है|
पर्णीय उपचार- अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा, सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 75 डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या जिरम 80 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू पी की 3.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए| सरसों की खेती में कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आई पी एम) कैसे करें

कटाई एवं गहाई

फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है| अतः पोधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए| फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है|
पैदावार
सरसों की उपरोक्त उन्नत तकनीक द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रो में 17 से 25 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्रो में 20 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की उपज प्राप्त हो जाती है|
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