Friday, 30 August 2019

सरसो की उन्नत खेती कैसे करे - 9540019555

            

सरसो की खेती लगभग सभी जगहों पे की जाती है सरसो की खेती किसान ज्यादातर तेल के लिए करते है हालाँकि सरसो सा साग भी लोग बड़े चाव  से खाते है इसके प्रयोग  करने से प्रोटीन खनिज तथा विटामिन ए और सी की अधिक मात्रा मिलती है 
सरसो के लिए भूमि तैयार करे ?
सरसो के लिए ठंढे लवायु की आवश्यकता होती है इस फसल को ठंढी में लगाई जाती है इसकी बुवाई के लिए 30  डिग्री सेंग्रेड तापमान अच्छा माना जाता है ये फसल ज्यादा तापमान बर्दास्त नहीं कर सकता ज्यादा तापमान से बीज अच्छा अंकुरत नहीं हो पाता है सरसो के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है भारी व हलकी चिकनी मिट्टी में भी उगाई जा सकती है अच्छी पैदावार  लिए बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह 3,4 बार  जोतवाना चाहिए खेत अच्छी तरह भुरभुरी हो जाये 
 खेत में देशी खाद डालकर व मिलाकर मेड़-बन्दी करके क्यारियां बनानी चाहिए 
रासायनिक खादों का प्रयोग 

 थायो यूरिया के प्रयोग से सरसों की उपज को 15 से 20  % तक  बढाया जा सकता है सडी हुई गोबर की खाद एक महीने पहले खेत में डाल  दे और उसकी जुताई अच्छी तरीके से कराये गोबर की खाद में मुख्य पोषक प्राप्त होती है खेत में अच्छी फसल के लिए यूरिया,फास्फोरस,सल्फर ,पोटास,MOP , की भी आवश्कता होती है जिंक डालने से फसल में करीब  20 % तक की बढ़ोतरी होती है  
 कीट एवं रोग प्रबंधन:- 
सरसों की उपज को बढ़ाने के लिए और रोगों का बहुत की ध्यान रखना होता है क्यूंकि किट हमारे फसल को काफी नुकसान पहुचाते है जिसके वजह से हमें उपज में कमी आजाती है अगर हम समय के रहते रोगों और कीटो पर नियंत्रण कर लेते है तो उपज में काफी फायेदा हो सकता है 
सरसों में लगने वाले रोग और किट :-
माहू :- माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के होते है ये 1.5 MM से 3 MM लम्बे होते है चूसने वाले किट होते है ये फूलो और पौधों के कोमल तनो बार बैठ कर उससे चूस कर उसे कमजोर बना देते है ये किट दिसम्बर महीने से लेकर जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है जब भी इनका प्रकोप हो तब डाइमिथोएट (रोगोर) 30 ई सी या मोनोक्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) 36 घुलनशील द्रव्य की 1 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए अगर जरुरत पड़े तो दुबारा 15 दिन बाद फिर छिडकाव करे अगर थोड़े बहुत है तो आप शाखाओ को तोड़ कर जमीन में गाड दे  
आरा मक्खी:- ये मक्खी के लगने पर मेलाथियान का छिडकाव करे जरुरत पड़ने पर दुबारा भी छिडकाव करे 

चितकबरा किट :-  इस किट के लगने पर मेलाथियान का छिडकाव करे 
बिहार हेयरी केटरपिलर : - इसके रोकथाम के लिए मेलाथियान का छिडकाव पुरे फसल पर करे 
सफेद रतुवा:- अगर फसल पर लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब, डाइथेन एम-45 या रिडोमिल एम.जेड. 72 डब्लू.पी. का छिडकाव करे 15 ,15 दिन के अंतर छिडकाव से बचा जा सकता है 
काला धब्बा या पर्ण चित्ती : - अगर ये किट दिखाई दे तो आईप्रोडियॉन (रोवरॉल), मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45) का अच्छे से छिडकाव करे 
चूर्णिल आसिता:- चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम के लिए  घुलनशील सल्फर (0.2 प्रतिशत) या डिनोकाप (0.1 प्रतिशत) का घोल बनाकर रोग के लक्षण दिखाई देने पर अच्छे से छिड़काव करें 
तना लगन:- कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) फफूंदीनाशक का छिड़काव दो बार फूल आने के समय 20 दिन के अन्तराल (बुआई के 50वें व 70वें दिन पर) छिडकाव कर के इससे बच सकते है 

पूसा बोल्ड:- ये 110 से 140 दिन में पक जाती है इसकी उपज 2000 से 2500 किलोग्राम हेक्टर होती है इसमें 40 % तक तेल निकलता है इसकी खेती राजथान,गुजरात दिल्ली, महाराष्ट्र में की जाती है 
पूसा जयकिसान (बायो 902):- ये 155-135 दिन में पक जाती है इसकी उपज 2500-3500 हेक्टर होती है इसमें 40 % तक तेल निकलता है इसकी खेती गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में की जाती है 
क्रान्ति:- ये 125-135 में पक जाती है इसकी उपज 1100-2135 हेक्टर होती है इनमे 42 % तेल निकलता है इसकी खेती हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में की जाती है  
आर एच 30:- ये 130-135 दिन में पाक जाती है इसकी उपज 1600-2200 प्रति हेक्टर होती है इनकी खेती हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान में की जाती है 
आर एल एम 619:- ये 140-145 दिन में पाक जाती है इसकी उपज 1340-1900 प्रति हेक्टर होती है इसमें 42 % तेल निकलता है इसकी खेती गुजरात, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, राजस्थान में की जाती है 
पूसा विजय:- ये 135-154 दिन में पक जाती है इसक उपज 1890-2715 प्रति हेक्टर होती है इनमे 38% तेल निकलता है इसकी खेती दिल्ली में की जाती है
पूसा मस्टर्ड 21:-  ये 137-152 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1800-2100 प्रति हेक्टर होती है इनमे 37 % तेल निकलता है इनकी खेती पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में होती है 
पूसा मस्टर्ड 22:- ये 138-148 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1674-2528 प्रति हेक्टर होती है इनमे 36 % तेल निकलता है इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में की जाती है  


बहुत बार हम खेत को तैयार करने में लेट हो जाते है या हमारा खेत समय से तैयार नहीं हो पाता है उसके लिए आप इस प्रजाती को भी बो सकते है इनकी इस प्रजाती को हम लेट से बोते है लेकिन समय से तैयार हो जाती है 

एन आर सी एच बी  101:- ये  120-125 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1200-1450 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में की जाती है 

सी एस 56 :-  ये  113-147 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1170-1425 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती  इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में की जाती है 

आर आर एन 505:- ये  121-127 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1200-1400 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती राजस्थान में की जाती है 
आर जी एन 145 :- ये 121-141 दिन में पक जाती है इसकी उपज 1450-1640 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती दिल्ली पंजाब, हरियाणा में की जाती है 
पूसा मस्टर्ड 24 :-  ये 135-145  दिन में पक जाती है इसकी उपज 2020-2900 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू व कश्मीर में की जाती है 

पूसा मस्टर्ड 26 :- ये  123-128  दिन में पक जाती है इसकी उपज 1400-1800 प्रति हेक्टर होती है इसकी खेती जम्मू व कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में की जाती है 

खरपतवार 
अगर खेत में खरपतवार हो तो उससे अच्छी तरह से देख कर निकाल कर बाहर फेक दे खरपतवार ज्यादा खेत में होने से हमारी फसल को नुकसान पहुंचते है

सिचाई प्रबंधन ?
समय समय पर जब भी  खेत में नमी की कमी हो समय पर सिचाई करना जरुरी है अगर बारिश होती है तो बारिश के ऊपर  निर्भर करता है लेकिन जब भी खेत में नमी  की कमी हो सिचाई करे 

कटाई कैसे करे ? फसल लगभग फ़रवरी से लेकर मार्च तक तक पाक जाती है फसल की पैदावार जब 75% तक फल पिली हो जाये तब ही कटाई करे अगर आपके पास समय है तो फसल की कटाई सुबह में ही करे क्यूंकि सुबह में कटाई करने से आपके फसल नरम रहती है और आपकी फसल ज्यादा बिखरती नहीं है
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सरसों की उन्नत खेती - 9540019555

सरसों की खेती (Mustard farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है| सरसों की खेती (Mustard farming) हरियाणा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र की एक प्रमुख फसल है| यह प्रमुख तिलहन फसल है| सरसों की खेती (Mustard farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्‍थाओं में उगाई जा सकती है|

उपयुक्त जलवायु

भारत में सरसों की खेती (Mustard farming) शीत ऋतु में की जाती है| इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है| सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है| अगर इस प्रकार का मोसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं|
बुवाई का समय
सरसों की खेती से अच्छी पैदवार के लिए बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए| जबकि पीली सरसों के लिए 15 सितम्बर से 30 सितम्बर उपयुक्त रहता है|
बीज की मात्रा
सिंचित क्षेत्रो में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए, और असिंचित क्षेत्रों के लिए इसकी मात्रा 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए है| जबकि पीली सरसों के 4 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर करना उपयुक्त रहता है|

बीजोपचार

1. जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को बुवाई के पूर्व फफूंदनाशक वीटावैक्स, कैपटान, साफ, सिक्सर, थिरम, प्रोवेक्स मे से कोई एक 3 से 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे|
2. कीटो से बचाव हेतु ईमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू पी, 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीजदर से उपचरित करें|
3. कीटनाशक उपचार के बाद मे एज़ेटोबॅक्टर तथा फॉस्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनो की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलो बीजो को उपचारित कर बोएँ|
बोने की विधि
सरसों की खेती के लिए बुवाई कतारों में करना अच्छा रहता है| इसके लिए कतार से कतार की दूरी 25 से 35 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखे तथा बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर रखे तथा असिंचित क्षेत्रों में बीज गहराई नमी अनुसार रखे|

सिंचाई प्रबंधन

सरसों की खेती के लिए 4 से 5 सिचांई पर्याप्त होती है| यदि पानी की कमी हो तो चार सिंचाई पहली बुवाई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते समय (बुवाई के 25 से 30 दिन बाद) तीसरी फूल प्रारम्भ होने के समय (45 से 50 दिन) तथा अंतिम सिंचाई फली बनते समय (70 से 80 दिन बाद) की जाती है| यदि पानी उपलब्ध हो तो एक सिंचाई दाना पकते समय बुवाई के 100 से 110 दिन बाद करनी लाभदायक होती है| सिंचाई फव्वारे विधि द्वारा करनी चाहिए|

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Sarson Beej - 9540019555

सरसों की खेती (Mustard farming) की जानकारी जलवायु, किस्में, रोकथाम व पैदावार :-

सरसों की खेती (Mustard farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है| सरसों की खेती (Mustard farming) हरियाणा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र की एक प्रमुख फसल है| यह प्रमुख तिलहन फसल है| सरसों की खेती (Mustard farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्‍थाओं में उगाई जा सकती है|
इसका उत्पादन भारत में आदिकाल से किया जा रहा है| इसकी खेती भारत में लगभग 66.34 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है, जिससे लगभग 75 से 80 लाख उत्पादन मिलता है| सरसों की यदि वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जाए, तो उत्पादक इसकी फसल से अधिकतम उपज प्राप्त कर सकते है| इस लेख में सरसों की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है| सरसों की जैविक उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें - सरसों की जैविक खेती कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं पूरी जानकारी

उपयुक्त जलवायु

भारत में सरसों की खेती (Mustard farming) शीत ऋतु में की जाती है| इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है| सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है| अगर इस प्रकार का मोसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं|
भूमि का चयन
सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती है| लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है| यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है| लेकिन मृदा अम्लीय नही होनी चाहिए|
खेत की तैयारी
किसानों को सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, इसके पश्चात दो से तीन जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के पश्चात सुहागा लगा कर खेत को समतल करना अति आवश्यक हैं| सरसों के लिए मिटटी जितनी भुरभुरी होगी अंकुरण और बढवार उतनी ही अच्छी होगी|

उन्नत किस्में

सरसों की खेती हेतु किस्मों का चयन कृषकों को अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए| कुछ प्रचलित और अधिक उपज वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित क्षेत्र - लक्ष्मी, नरेन्द्र अगेती राई- 4, वरूणा (टी- 59), बसंती (पीली), रोहिणी, माया, उर्वशी, नरेन्द्र स्वर्णा-राई- 8 (पीली), नरेन्द्र राई (एन डी आर- 8501), सौरभ, वसुन्धरा (आरएच- 9304) और अरावली (आरएन- 393) प्रमुख है|
असिंचित क्षेत्र- वैभव, वरूणा (टी – 59), पूसा बोल्ड और आरएच- 30 प्रमुख है|
विलम्ब से बुवाई- आशीर्वाद और वरदान प्रमुख है|
क्षारीय/लवणीय भूमि हेतु- नरेन्द्र राई, सी एस- 52 और सी एस- 54 आदि प्रमुख है| सरसों की खेती के लिए किस्मों की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें - सरसों की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय एवं पैदावार क्षमता
बुवाई का समय
सरसों की खेती से अच्छी पैदवार के लिए बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए| जबकि पीली सरसों के लिए 15 सितम्बर से 30 सितम्बर उपयुक्त रहता है|

बीज की मात्रा
सिंचित क्षेत्रो में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए, और असिंचित क्षेत्रों के लिए इसकी मात्रा 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए है| जबकि पीली सरसों के 4 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर करना उपयुक्त रहता है|

बीजोपचार

1. जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को बुवाई के पूर्व फफूंदनाशक वीटावैक्स, कैपटान, साफ, सिक्सर, थिरम, प्रोवेक्स मे से कोई एक 3 से 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे|
2. कीटो से बचाव हेतु ईमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू पी, 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीजदर से उपचरित करें|
3. कीटनाशक उपचार के बाद मे एज़ेटोबॅक्टर तथा फॉस्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनो की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलो बीजो को उपचारित कर बोएँ|
बोने की विधि
सरसों की खेती के लिए बुवाई कतारों में करना अच्छा रहता है| इसके लिए कतार से कतार की दूरी 25 से 35 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखे तथा बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर रखे तथा असिंचित क्षेत्रों में बीज गहराई नमी अनुसार रखे|

खाद और उर्वरक मात्रा

उर्वरकों का प्रयोग मिट्‌टी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए| सिचित क्षेत्रों मे नत्रजन 120 किलोग्राम, फास्फेट 60 किलोग्राम एवं पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है| फास्फोरस का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है| क्योकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है, यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए तों गंधक की उपलब्धता की सुनिश्चित करने के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहियें| साथ में आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है|
असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिग के रूप में प्रयोग की जानी चाहिए| यदि डी ए पी का प्रयोग किया जाता है, तो इसके साथ बुवाई के समय 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिये लाभदायक होता है तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग बुवाई से पहले करना चाहियें|
सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंड़ो में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे नाई या चोगों से दी जानी चाहिए| नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25 से 30 दिन) के बाद टापड्रेसिंग में डाली जानी चाहिए|

सिंचाई प्रबंधन

सरसों की खेती के लिए 4 से 5 सिचांई पर्याप्त होती है| यदि पानी की कमी हो तो चार सिंचाई पहली बुवाई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते समय (बुवाई के 25 से 30 दिन बाद) तीसरी फूल प्रारम्भ होने के समय (45 से 50 दिन) तथा अंतिम सिंचाई फली बनते समय (70 से 80 दिन बाद) की जाती है| यदि पानी उपलब्ध हो तो एक सिंचाई दाना पकते समय बुवाई के 100 से 110 दिन बाद करनी लाभदायक होती है| सिंचाई फव्वारे विधि द्वारा करनी चाहिए|
खरपतवार नियंत्रण
सरसों के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते है| इनके नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई बुवाई के तीसरे सप्ताह के बाद से नियमित अन्तराल पर 2 से 3 निराई करनी आवश्यक होती हैं| रासयानिक नियंत्रण के लिए अंकुरण पूर्व बुवाई के तुरंत बाद खरपतवारनाशी पेंडीमेथालीन 30 ई सी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए|
भूमि में अच्छी नमी में बुवाई के 48 घंटो में छिड़काव करने से अच्छा लाभ होता हैं| खरपतवारनाशक की कार्य कुश्लता बढ़ाने हेतु छिड़काव करते समय फ्लैट फैन या फल्ड जैट नोज़ल का प्रयोग और साफ पानी का प्रयोग करें| एक ही खरपतवारनाशक हर साल प्रयोग न करें| इससे खरपतवारों में सहनशीलता बनती है| खरपतवार की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- राई-सरसों में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उत्पादन हेतु

प्रमुख कीट

आरा मक्खी- इस कीट की सूड़ियॉ काले स्लेटी रंग की होती है| जो सरसों की खेती में पत्तियों को किनारों से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है, तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है|
चित्रित बग- इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है| शिशु एवं प्रौढ़ पत्तियों, शाखाओं, तनों, फूलों एवं फलियों का रस चूसते है| जिससे प्रभावित पत्तियाँ किनारों से सूख कर गिर जाती है| प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है|
बालदार सुंडी- सुंडी काले एवं नारंगी रंग की होती है और पूरा शरीर बालों से ढका रहता है| सूड़ियाँ प्रारम्भ में झुण्ड में रह कर पत्तियों को खाती है तथा बाद में पूरे खेत में फैल कर पत्तियां खाती है| तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है|
माहूं- इस कीट की शिशु तथा प्रौढ़ पीलापन लिये हुए हरे रंग के होते है| जो पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एव नये फलियों के रस चूसकर कमजोर कर देते है| माहूँ मधुस्राव करते है, जिस पर काली फफूंद उग आती है| जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है|
पत्ती सुरंगक कीट- इस कीट की सुंडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है| जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखायें बन जाती है|
रोकथाम के उपाय
1. सरसों की खेती हेतु गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए|
2. सरसों की खेती में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए|
3. आरा मक्खी की सूड़ियों को प्रातः काल इकठ्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए|
4. प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में पायी जाने वाली बालदार सुंडी की पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए|
5. प्रारम्भिक अवस्था में माहू से प्रभावित फूलों, फलियों एवं शाखाओं को तोड़कर माहू सहित नष्ट कर देना चाहिए|
6. आरा मक्खी और बालदार सुंडी का प्रकोप यदि आर्थिक स्तर से अधिक हो तो नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत डब्लू पी की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर बुरकाव या मैलाथियान 50 प्रतिशत ई सी की 1.50 लीटर या डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई सी की 500 मिलीलीटर मात्रा या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई सी की 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
7. माहूं चित्रित बग और पत्ती सुरंगक कीट का आर्थिक स्तर से अधिक प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई सी या मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी या क्लोरोपाईरीफास 20 प्रतिशत ई सी की 1.0 लीटर या मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस एल की 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए| एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई सी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग किया जा सकता है|
ध्यान दें- ध्यान रहे रसायन से मधु मक्खी को नुकसान न हो हमेशा दिन में 2 बजे के बाद छिड़काव करें| लेडी बर्ड बीटल रोज दिन में 10 से 15 माहु प्रोढ खाती हैं|

प्रमुख रोग

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा- इस रोग से सरसों की खेती में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते है| जो गोल छल्ले के रूप में पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते है| तीव्र प्रकोप की दशा में धब्बे आपस में मिल जाते है, जिससे पूरी पत्ती झुलस जाती है|
सफेद गेरूई- इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते है| जिससे पत्तियों पीली होकर सूखने लगती है| फूल आने की अवस्था में पुष्पक्रम विकृत हो जाते है| जिससे कोई भी फली नहीं बनती है|
तुलासिता- इस रोग से सरसों की खेती में पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे धब्बे तथा पत्तियों निचली सतह पर इन धब्बों के नीचे सफेद रोयेदार फफूंदी उग आती है| धीरे-धीरे पूरी पत्ती पीली होकर सूख जाती है|
नियंत्रण के उपाय
बीज उपचार
1. सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू एस की 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए|
2. अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए|
भूमि उपचार- भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोडरमा बिरडी 1 प्रतिशत डब्लू पी या ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू पी की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 60 से 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से राई और सरसों के बीज या भूमि जनित आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है|
पर्णीय उपचार- अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा, सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 75 डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या जिरम 80 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किलोग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू पी की 3.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए| सरसों की खेती में कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आई पी एम) कैसे करें

कटाई एवं गहाई

फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है| अतः पोधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए| फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है|
पैदावार
सरसों की उपरोक्त उन्नत तकनीक द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रो में 17 से 25 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्रो में 20 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की उपज प्राप्त हो जाती है|
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Thursday, 29 August 2019

UNNAT SEEDS - 9540019555


Spacing in Unnat Mustard Farming:- Spacing of mustard plants should be about 45 cm x 20 cm.Manures and Fertilization in Unnat Mustard Farming:- 8 to 12 tons of Farm Yard Manure (F.Y.M) per hectare should be added as part of the field preparation.18 to 25 kg P2O5 and 25 to 30 kg N per hectare should be applied in rain fed condition at the time of sowing. 35 to 45 kg N, 25 to 35 kg P2O5 and 15 to 25 kg K2O per hectare should be applied below the seed at sowing time of irrigated crop. After 1 month of sowing, 15 to 25 kg N per hectare should be applied as top dressing.Irrigation in Unnat Mustard Farming:- Pre-soaking irrigations should be given before sowing the seeds. 4 irrigations should be applied @ 4 weeks interval after sowing the seeds.Weed control in Unnat Mustard Farming:- 3 weeding & 2 hoeing should be given @ 2 weeks interval. Thinning should be done after 2 weeks time interval (in case of pure mustard crop).

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Wednesday, 14 August 2019

ATS Grandstand -"Where Dreams Meets Reality"

ATS Grandstand - Where Dreams Meets Reality

                                                           Gurgaon is prominently known as an IT city and rising with the quick pace in land advancement. Gurgaon has turned into a most loved place to begin an organization, a few national and universal organizations have their workplaces in Gurgaon. The reason is, it is all around associated with NH-8 and Dwarka Expressway.
Since Gurgaon has turned into a most loved place for work searchers and new businesses. It has pulled in designers also financial specialists to put resources into land in Gurgaon.Finding a correct house at the correct area will dependably improve the estimation of your venture. Gurgaon has turned out to be extraordinary compared to other areas for lodging reason, and the city contains heaps of presumed private and business ventures.
The ventures, instructive organizations, the universal organizations and remote speculations have re-imagined the expanding interest of Apartments in Gurgaon area.

The Infrastructure of the city is reliably enhancing, and simple availability with all the significant areas of NCE through prepare and street. There are a few MNC which offers generously compensated employments, causing to relocation of bigger number experts inside the city. These lucrative employments empower individuals to buy a private loft in the Gurgaon the give them a superior way of life.
The best place to live inside the city is Sector 99A, Dwarka Expressway, Gurgaon, which is in nearness to the airplane terminal, railroad station, multiplexes and instructive foundations and in the arms of normal excellence. The ATS Group encourages you to discover your fantasy house, with their new up and coming private venture in Sector 99A, Dwarka Expressway, Gurgaon. The task name is ATS Grandstand. ATS Group has already effectively gave a few private and business extends inside the city, and known as a specialist engineers who transform dream homes into reality.

Their new private undertaking ATS Grandstand Gurgaon could their best creation and will setup another turning point in the Indian land part.

ATS Grandstand offering extravagant private lofts Venus on Sector 99A, Dwarka Expressway, Gurgaon. This private venture incorporates 5 Towers, 410 Homes and 8 Villas. These pads are deliberately composed and confirmed by the specialists. The lofts have all the essential and present day offices that required to carry on with an advanced way of life. Speculators will get ownership by August end 2017.

ATS Grandstand structure 

Details of ATS Grandstand 


ATS Grandstand considers another wonderful private venture in Gurgaon by ATS Group. This private task is situated in Sector 99A, near Dwarka Expressway and Metro Corridor, Gurgaon. The task spread more than 12.5 Acres, that contains 5 Towers, 410 Homes and 8 Villas. The pads accessible in 3BHK 1550 Sq.Ft for Rs. 85. Lacs and 4BHK, 2850 sqft, Rs. 1.50 Crore with staggering insides, all around prepared rooms, kitchen and washrooms.

Value Plan of ATS Grandstand 


These condos have furnished with offices required for carrying on with an agreeable and lavish way of life. ATS Grandstand is multi-story private building, which remains among the beautiful perspective of the city and inside the most creating territory of the city. The ownership of your condos in ATS Grandstand is normal close to the August end 2017.

The pads in Sector 99A, Dwarka Expressway are the most blazing goal in Gurgaon for the land financial specialists, and for the individuals who need to have all the extravagance and solace, alongside current necessities in closeness in the midst of the clean and contamination free environment.

ATS Grandstand Location :- https://goo.gl/maps/qXnTBkJ3o8oD7sxi8 

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Tuesday, 13 August 2019

THE GRANDSTAND

THE GRANDSTAND




 Northern parts of India are drifting in setting to broad private improvement. Gurgaon is one of the first class land properties spot inside National Capital Region. After foundation of various prestigious realty goliaths, this metropolitan city is getting changed with various strange improvements.


ATS Group has been making various entrancing structures in various prime districts of this metropolitan city. This shocking realty aggregate will dispatch a private venture named as ATS Grandstand in Sector 99A, Gurgaon.
"Show off" is a most recent up and coming magnificent private venture going to create with various perfect private spaces.

The venture is wanted to create on a land bundle of 13.25 sections of land. Land in Gurgaon is on an upsurge in the present circumstances. This city is a base of multitudinous top of the line land ventures. Aside from this, the venture is situated in the nearness to different built up social civilities other basic administrations.


ATS Grandstand Gurgaon is open by means of various lifted passageways, for example, Delhi-Gurgaon Expressway, Delhi-Ajmer Expressway and Delhi-Jaipur Expressway that let you access various alluring goals.

This inevitable luxurious home is a center point of various civilities, for example, clubhouse, gym, tennis court, squash court, swimming pool, crate ball, yoga, and so on. There are various social comforts, for example, social center points, doctor's facilities, presumed schools and universities, banks, and so forth settled adjacent this huge private venture.

Other than this, "Show off" venture is prepared of 3 and 4 BHK sorts of private spaces intended to grow soon. The venture is an extensive private composite of 9 private towers and 620 private units. Accessible private spaces inside this sumptuous home are sprawling in the sizes fluctuate from 1550 sq. ft. to 3100 sq. ft.

The city of Gurgaon is these days venturing up as far as perfect private buildings in the present circumstances. According to ATS Grandstand value list, private arrangements are accessible at the value extend beginning from Rs. 71.14 lakhs to Rs. 1.42 crores.

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