Wednesday, 22 February 2023

Amarah by Ashiana




ASHIANA AMARAH 2,3 & 4 BHK HOMES
KIDS CENTRIC HOMES WITH PREMIUM AMENTIES AT SECTOR 93, DWARAKA EXPRESSWAY, GURUGRAM.

Ashiana Amarah is the most stylish and modern Upcoming homes for your child in Sector 93 in Gurgaon. Best Apartment in New Gurgaon 2, 3 & 4 Bedroom Coming Up in 22 Acres. Parenting is similar to gardening in that you plant seeds, and with the correct environment, love, caring, and patience, you watch as your children grow into the most stunning and bright natural people. In keeping with this line of reasoning, Ashiana Amarah will grow with children at the centre of its design and a real desire to provide them with the upbringing they deserve. This is what distinguishes Ashiana Amarah as “Behtar Parvarish ka Pata.” Delhi Public School, one of Gurgaon’s top institutions, is a short distance from the location.

For your kids’ mental and physical well-being, Ashiana Amarah offers top-notch amenities such a clubhouse, learning hub, swimming pool with a coach, play area, badminton, basketball, skating, cricket, tennis, and more recreational facilities.

A life settled in an atmosphere of comfort and peace and a highly coveted address. A place where life is extended to embrace every day outside the home. Ashiana Amrah Upcoming Apartments in Sector 93, on the skyline of Gurgaon, the city between cities.

For More Details Call - 9540019555

#ashianahousing #amarahbyashiana #ashianaamarah #ashiana #sector_93_gurgaon #sector93 #Ashiana_Amarah_sector93_gurgaon #unnatindia #unnatindiarealty #delhincr #property #propertyingurugram #Gurgaon #propertyinvestment 

https://youtube.com/@unnatindia

Monday, 10 January 2022

Omicron Recovery Diet



Diet plan For Corona Patients: नए साल पर एक बार फिर कोरोना वायरस के कहर से लोग परेशान है. कोरोना के नए ओमिक्रोन वेरिएंट के सामने आते ही संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. देश में रोजाना एक लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं. हालांकि ओमिक्रोन से संक्रमित ज्यादातर मरीजों में हल्के लक्षण ही नजर आ रहे हैं यही वजह है कि लोग इसे काफी हल्के में ले रहे हैं. कोरोना के तेजी से फैलने की बड़ी वजह भी यही है. ठंड में कई लोग इसे सिर्फ सर्दी-खांसी समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं, जिसकी वजह से संक्रमण तेजी से फैल रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ लोगों को लगातार आगाह कर रहे हैं और कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कह रहे हैं. अगर आप कोरोना से संक्रमित हैं तो आपको खान-पान का बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.


हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति को खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए. आपकी डाइट किसी भी संक्रमण से निपटने में मदद करती है. कोरोना से बचने के लिए इम्यूनिटी का मजबूत होना जरूरी है. इसके लिए आपको जिंक, विटामिन सी और प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए. ठंड में पानी कम पीते हैं जिससे परेशानी बढ़ सकती है. ऐसे में आपको ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए. आइये जानते हैं कोरोना से रिकवरी के दौरान कैसा होना चाहिए आपका डाइट प्लान? 

इन खाद्य पदार्थों से मिलेगा जिंक (Zinc Natural Source)

जिंक की कमी को पूरा करने के लिए आप खाने में कद्दू के बीज, काजू, छोले और मछली शामिल कर सकते हैं. इनके सेवन से जिंक की कमी को पूरा किया जा सकता है. जिंक में भरपूर एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो वायरस को बढ़ने या गंभीर होने से रोकता है. इसके सेवन से इम्यूनिटी भी मजबूत होती है. 

इन खाद्य पदार्थों से मिलेगा विटामिन सी (Vitamin C Natural Source)

हमारी इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए विटामिन सी बहुत जरूरी है. विटामिन सी एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है और इम्यून पावर को बढ़ाता है. आप खाने में खट्टे फल, हरी सब्जियां, कीवी, स्ट्रॉबेरी, पपीता अमरूद, ब्रोकोली जैसी चीजें खा सकते हैं. 

इन खाद्य पदार्थों से मिलेगा विटामिन डी (Vitamin D Natural Source)

विटामिन डी न सिर्फ हड्डियों को मजबूत बनाता है बल्कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए भी जरूरी है. कोरोना के ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में भी विटामिन डी को शामिल किया गया है. विटामिन डी कोरोना से रिकवरी में मदद करता है. इसके लिए आप खाने में मशरूम, अंडे की जर्दी, दही और दूध जैसे खाद्य पदार्थों को शामिल कर सकते हैं. इसके साथ ही रोजाना आधा घंटा धूप में जरूर बैठें. 

इन खाद्य पदार्थों से मिलेगा प्रोटीन (Protien Natural Source)

मसल्स बनाने और डैमेज सेल्स को रिपेयर करने के लिए प्रोटीन भी जरूरी है. प्रोटीन से इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है और रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है. कोरोना में डैमेज सेल्स को ठीक करके के लिए प्रोटीन का सेवन करने की सलाह दी जाती है. आप प्रोटीन के लिए बीज और नट्स, दाल, डेयरी उत्पाद, चिकन, अंडा और मछली खा सकते हैं. 

प्राकृतिक एंटीवायरल खाद्य पदार्थ (Antiviral Natural Source)

आपको कुछ प्राकृतिक चीजों का भी सेवन करते रहना चाहिए. कई ऐसी आयुर्वेदिक औषधि हैं जो रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं. तुलसी, अदरक, काली मिर्च, लौंग और लहसुन जैसी चीजों के सेवन से आपका शरीर मजबूत बनता है. इनमें भरपूर एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं. आप चाहें तो रोजाना सर्दियों में काढ़ा भी पी सकते हैं. 

इन तरल पदार्थों का करें सेवन (Liquid Intake Natural Source)

कोरोना से रिकवरी के दौरान मरीज को तरल पदार्थों का सेवन भरपूर करना चाहिए. संक्रमित व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा और एनर्जी कम हो जाती है. तरल पदार्थों से शरीर को भरपूर मिनरल्स और विटामिन्स मिलते हैं. गरम पानी पीने से शरीर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है. आप गुनगुना करके नारियल पानी, आंवला का जूस, ताजा फल और सब्जियों का जूस, छाछ और ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं.

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों की हम पुष्टि नहीं करते है. इनको केवल सुझाव के रूप में लें. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

Wednesday, 6 May 2020

काले गेहूं के फायदे - Benefits of Black Wheat

क्या आपने कभी काले गेहूं के बारे में सुना है। काले गेहूं में फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम, कार्ब्स जैसे जरूरी पौषक तत्व पाए जाते हैं जो दिल की बीमारियों के साथ शरीर में ब्लड शुगर कम करने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में आज हम आपको काले गेहूं के फायदे बता रहे हैं, जो आपकी सेहत के लिए काफी मददगार है। तो चलिए जानते हैं काले गेहूं के फायदे...

Black Wheat Benefits In Hindi / काले गेहूं के फायदे: काले गेहूं सर्दियों में दिल की धड़कन को सामान्य रखता है। काले गेहूं का सेवन हर मौसम में किया जा सकता है क्योंकि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक होती है। जो आपको हर मौसम में फिट एंड हेल्दी रखता है। काले गेहूं का आटा भी आप खा सकते हैं। तो आइए जानते हैं क्या होता है काला गेहूं ? और क्या हैं काले गेहूं के फायदे ?
क्या हैं काले गेहूं ?
काले गेहूं , एक साबुत अनाज की जगह एक तरह के बीज होते हैं जिनका भोजन के रूप में सेवन किया जाता है। इनकी खासियत ये है कि ये अन्य अनाज की तरह घास पर नहीं उगते हैं। ये अन्य सामान्य छद्मकोशिकाओं वाले अनाज क्विनोआ और ऐमारैंथ के समूह में शामिल हैं।
काले गेहूं के फायदे (Black Wheat Benefits)

दिल के रोगों को करे दूर
काले गेहूं का सेवन करने से दिल की बीमारियों के होने का खतरा कम होता है, क्योंकि काले गेहूं में ट्राइग्लिसराइड तत्व मौजूद होते हैं, इसके अलावा काले गेहूं में मौजूद मैग्नीशियम उच्च मात्रा में पाया जाता है जिससे शरीर में कोलेस्ट्राल का स्तर को सामान्य बनाए रखने में मदद मिलती है।
कब्ज को करता है दूर
काले गेहूं का नियमित सेवन करने से शरीर को सही मात्रा में फाइबर प्राप्त होता है जिससे पेट के रोगों खासकर कब्ज में लाभ मिलता है।
पेट के कैंसर में फायदा
काले गेहूं में मौजूद फाइबर से पाचन तंत्र मजबूत होता है और पाचन संबंधी समस्याओं के अलावा पेट के कैंसर से भी निजात मिलती है।
हाई ब्लड प्रेशर में लाभ
इसके नियमित सेवन करने से शरीर में उच्च कोलेस्ट्रॉल में उपयोगी होने के अलावा, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर होता है
डायबिटीज में असरदार
मधुमेह वाले लोगों के लिए सबसे उपयोगी होता है क्योंकि इसका सेवन करने से रक्त शर्करा यानि ब्लड शुगर को कम करने में मदद मिलती है।
आंतों के इंफेक्शन को खत्म करने में कारगर
रोजाना काले गेहूं का अलग अलग रूपों में सेवन करने से शरीर में फाइबर का स्तर बेहतर होता है और आंतों के इंफेक्शन को ठीक करने में मदद मिलती है
नए ऊतकों को बनाने में कागर
काले गेहूं में मौजूद जरूरी पौषक तत्वों में से एक फास्फोरस भी होता है, जो शरीर में नए ऊतकों को बनाने के साथ उनके रखरखाव में अहम भूमिका निभाता है जिससे शरीर सुचारु रुप से कार्य कर सके।
एनीमिया
काले गेहूं में प्रोटीन, मैग्नीशियम के अलावा आयरन भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है । ऐसे में अगर आप रोजाना काले गेहूं का सेवन करते हैं, तो शरीर में रक्त की कमी यानि एनिमिया की बीमारी को दूर किया जा सकता है। इससे शरीर में आक्सीजन का स्तर सही रहता है।

शरीर के विकास में मदद 

काले गेहूं यानि साबुत अनाज में मैंगनीज उच्च मात्रा में पाया जाता है, मैंगनीज स्वस्थ चयापचय, विकास और शरीर के एंटीऑक्सिडेंट सुरक्षा के लिए आवश्यक भूमिका निभाता है।
कोलेस्ट्राल को कम करता है
काले गेहूं में असंतृप्त वसीय अम्ल और फाइबर उच्च मात्रा में पाया जाता है। ऐसे नियमित रूप से काले गेहूं का सेवन तब उपयोगी होता है जब वे रक्त में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के उच्च स्तर पर मौजूद होते हैं। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने में प्रभावी साबित होता।
काले गेहूं के पौषक तत्व
साबुत अनाज में मौजूद पोषण मूल्य कई पके अनाजों की तुलना में काफी अधिक है। कच्चे अनाज की 3.5 औंस (100 ग्राम) में पोषण तथ्य होते हैं....
कैलोरी: 343, पानी: 10%, प्रोटीन: 13.3 ग्राम, कार्ब्स: 71.5 ग्राम, चीनी: 0 ग्राम, फाइबर: 10 ग्राम
वसा: 3.4 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट
काले गेहूं का उत्पादन
काले गेहूं का उत्पादन सबसे ज्यादा रूस, कजाकिस्तान, चीन के अलावा मध्य और पूर्वी यूरोप में, उत्तरी गोलार्ध में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है।
काले गेहूं का उपयोग
काले गेहूं का उपयोग अनाज चाय में किया जाता है या इसे ग्रेट्स, आटा और नूडल्स के रूप में प्रयोग किया जाता है। जबकि कई यूरोपीय और एशियाई देशो में पारंपरिक व्यंजनों में मुख्य पदार्थ यानि चावल के रूप में उपयोग किया जाता है।

काले गेहूं की खेती - Black Wheat Farming


विगत वर्ष रबी के सीजन में इंदौर जिले के साथ ही मालवा के नीमच, राजस्थान राज्य एवं बिहार राज्य  के कुछ किसानों ने काले गेहूं की बुवाई की थी. क्षेत्र में पहली बार बोए गए इस काले गेहूं को लेकर किसानों को जिज्ञासा थी कि उत्पादन कैसा रहेगा. लेकिन काले गेहूं के उत्पादन से यह स्पष्ट हो गया  कि इसका उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही हो रहा है.राज्यों के  प्रगतिशील किसानों ने कम्पनी की मदद से उन्होने काले गेहूं का 40 किलो बीज प्राप्त किया था जिसे तीन बीघा जमीन में बोया था. गेहूं की कटाई और सफाई के बाद जब इस गेहूं को तौला गया तो इसका वजन 36 क्विंटल निकला. यह उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही रहा. सामान्य गेहूं का भी औसतन एक बीघा में 10 -12 क्विंटल उत्पादन होता है.
कई वर्षों  की रिसर्च के बाद काले गेहूं का पेटेंट कराया जा चुका है.आपको बता दें काले, नीले और जमुनी रंग वाले ये गेहूं आम गेहूं से कई गुना ज्यादा पौष्टिक है. ब्लैक व्हीट तनाव, मोटापा, कैंसर, डायबीटीज और दिल से जुडी बीमारियों की रोकथाम में मददगार साबित होगी. बता दे गेहूं में जहां एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पास प्रति मिलियन होती है, वहीँ ब्लैक व्हीट मे 40 से 140 पास प्रति मिलियन पायी जाती है. एंथोसाइनिन ब्लू बेरी जैसे फलों की तरह सेहत लाभ प्रदान करता है. यह शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की रोकथाम करता है. इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है.

 उन्नत काले गेहूं की विशेषतायें: 

यह गेहूं साधारण गेहूं के मुक़ाबले बहुत अधिक पौष्टिक है तथा गुणवक्ता के मामले में इसे Blueberries  नामक फल के बराबर रखा गया है. आइये जानते है इसके सेवन से होने वाले फायदे-
तनाव : आज के समय में लगभग हर शख्स तनाव से पीड़ित है या इसका कही न कही सामना कर रहा है. तनाव से बाहर आने के लिए वह रोजाना नई -नई दवाईयों का सेवन करता है, जिसका परिणाम यह होता है कि कुछ समय के बाद जब इन दवाइयों का असर समाप्त होने लगता है तो पीड़ित इन्सान अपना रुझान नई दवायों की तरफ़ कर देता है, मतलब स्थिति और भी ख़राब होती चली जाती है. यहाँ काला गेहूं  तनाव जैसी इस भयानक बीमारी को समाप्त करने के लिए एक आशा की किरण लेकर आया है. शोध से यह पता चला है की तनाव से पीड़ित व्यक्ति पर इसके प्रयोग के बहुत ही सकारात्मक परिणाम पाये गये हैं.
मोटापा : शोध में मोटापे को कंट्रोल करने में भी काले गेहूं का बहुत ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं.
कैंसर : कैंसर एक ऐसा रोग है जिसका अभी तक कोई स्थाई ईलाज उपलब्ध नहीं हो पाया है, इस समय पर काला गेहूं उन सभी लोगों के लिए खाद्य खुराक के रूप में बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है जब इस रोग पर नियंत्रण पाने में दवाएं विफल साबित हो रही हैं.
मधुमेह या डायबीटीज: यह एक ऐसा रोग है जो दुनिया के सभी प्रगतिशील देशो के साथ भारत व अन्य देशों में अपने पाव पसार चुका है, और विडम्बना यह है कि बहुत सी महंगी दवायों के बावजुद अभी तक इसका स्थायी ईलाज उपलब्ध नहीं है, यहाँ भी रिसर्च में काले गेहूं प्रयोग के पीड़ित इंसान पर सकारात्मक परिणाम सामने आयें हैं.
हृद्य रोग: हृदय संबधी अधिक मात्रा में बढ़ रहे रोग आज की हमारी जीवन शैली का ही परिणाम हैं, मॉडर्न जिन्दगी के नाम पर हम अपने स्वस्थ शरीर रूपी पूंजी को खोते जा रहे है. इसान महंगे ईलाज से अपने शरीर को स्वस्थ्य रखने का संघर्ष कर रहा है जो कि बहुत खर्च के बावजूद स्वस्थ जीवन की गारंटी नहीं देता. हृदय रोगियों पर किये शोध में काले गेहूं के मामले में बहुत सार्थक परिणाम सामने आयें हैं.

काला गेहूं का बीज ख़रीदने के लिए आप  संपर्क कर सकते है-

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

PLEASE CONTACT US FOR ANY INFORMATION THAT YOU MAY NEED.PLEASE CONTACT US FOR ANY INFORMATION THAT YOU MAY NEED.


INFO@UNNATINDIA.IN | WWW.UNNATINDIA.IN | +91-9540019555


INFO@UNNATINDIA.IN|WWW.UNNATINDIA.IN|+91-9540019555

Tuesday, 5 May 2020

धान की उन्नत खेती


धान (Paddy) भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। यह सम्पूर्ण फसल क्षेत्र का 1/4 भाग यह कवर करता है। धान (Paddy) लगभग 50% भारतीय आबादी का भोजन है। यह दुनिया की 75% आबादी का भोजन है। एशिया में यह विषेेश रूप से खाया जाता है। गेहूं  बाजरा  मक्का के बाद यह  सबसे अधिक उत्पादित किया जाता है। धान (Paddy) सबसे पुरानी फसलों में से एक है। 

धान हेतु जलवायु

धान मुख्यतः उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु की फसल है| धान को उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जहां 4 से 6 महीनों तक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है| फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है| रात्रि का तापमान जितना कम रहे, फसल की पैदावार के लिए उतना ही अच्छा है| लेकिन 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरना चाहिए|
उपयुक्त भूमि
धान की खेती के लिए अधिक जलधारण क्षमता वाली मिटटी जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिटटी प्रायः उपयुक्त होती हैं| भूमि का पी एच मान 5.5 से 6.5 उपयुक्त होता है| यद्यपि धान की खेती 4 से 8 या इससे भी अधिक पी एच मान वाली भूमि में की जा सकती है, परंतु सबसे अधिक उपयुक्त मिटटी पी एच 6.5 वाली मानी गई है| क्षारीय एवं लवणीय भूमि में मिटटी सुधारकों का समुचित उपयोग करके धान को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है|
फसल चक्र
उत्तरी भारत की गहरी मिटटी में धान काटने के बाद आलू, बरसीम, चना, मसूर, सरसोंलाही या गन्ना आदि को उगाया जाता है| उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई, विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध होने पर एक वर्षीय फसल चक्र –
1. धान-गेहूं-लोबिया/उड़द / मूंग  (एक वर्ष)
2. धान-सब्जी मटर-मक्का  (एक वर्ष)
3. धान-चना-मक्का+लोबिया  (एक वर्ष)
4. धान-आलू-मक्का  (एक वर्ष)
5. धान-लाही-गेहूं  (एक वर्ष)
6. धान-लाही–गेहूं-मूंग  (एक वर्ष)
7. धान-बरसीम  (एक वर्ष)
8. धान-गन्ना-गन्ना पेड़ी-गेहूं-मूंग  (तीन वर्ष)
9. धान-गेहूं  (एक वर्ष)
10. धान-सब्जी मटर-गेहूं-मूंग  (एक वर्ष)|

धान की उन्नत किस्में

धान की खेती के लिए अपने क्षेत्र विशेष के लिए उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि अधिक से अधिक पैदावार ली जा सके| इसके लिए कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे-
धान की अगेती किस्में (110 से 115 दिन)- इनमें मुख्य रूप से पी एन आर- 381, पी एन आर- 162, नरेन्द्र धान- 86, गोविन्द, साकेत- 4, पूसा- 2 व 21, पूसा- 33 व 834, और नरेन्द्र धान- 97 आदि किस्में प्रमुख हैं| इनकी नर्सरी का समय 15 मई से 15 जून तक है और इनकी औसत पैदावार लगभग 4.5 से 6.0 टन प्रति हेक्टेयर तक है|
धान की मध्यम अवधि की किस्में (120 से 125 दिन)- इनमें मुख्य किस्में पूसा- 169, 205 व 44, सरजू- 52, पंत धान- 10, पंत धान- 12, आई आर- 64 आदि प्रमुख हैं| इनका नर्सरी समय 15 मई से 20 जून तक होता है और इनकी औसत पैदावार लगभग 5.5 से 6.5 टन प्रति हेक्टेयर है|
धान की लम्बी अवधि वाली किस्में (130 से 140 दिन)- इस वर्ग में पूसा- 44, पी आर- 106, मालवीय- 36, नरेन्द्र- 359, महसुरी आदि प्रमुख किस्में हैं| इनकी औसत पैदावार लगभग 6.0 से 7.0 टन प्रति हेक्टेयर है| इनका नर्सरी समय 20 मई से 20 जून तक होता है| इन किस्मों के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में लगाई जाने वाली कुछ प्रमुख किस्में जैसे आई आर- 36, एम टी यू- 7029 (स्वर्णा), एम टी यू- 1001 (विजेता), एम टी यू- 1010 (काटन डोरा संहालू), बी पी टी- 5204 (साम्भा महसुरी), उन्नत सांभा महसुरी (पत्ती के झुलसा रोग के प्रतिरोधी), ललाट, ए डी टी- 43 आदि हैं|
धान की संकर किस्में (125 से 135 दिन)- इनमें मुख्य रूप से पंत संकर धान- 1, के आर एच- 2, पी एस डी- 3, जी के- 5003, पी ए- 6444, पी ए- 6201, पी ए- 6219, डी आर आर एच- 3, इंदिरा सोना, सुरूचि, नरेन्द्र संकर धान- 2, प्रो एग्रो- 6201, पी एच बी- 71, एच आर आई- 120, आर एच- 204 और पी आर एच -10 संकर किस्में हैं|  इनकी औसत पैदावार लगभग 6.5 से 8.0 टन प्रति हेक्टेयर है|
धान की बासमती किस्मे- इनमें मुख्य रूप से पूसा बासमती- 1, पूसा सुगंध- 2, 3, 4 व 5, कस्तुरी- 385, बासमती- 370 व बासमती तरावडी आदि प्रमुख है| इसका नर्सरी समय 15 मई से 15 जून तक होता है| इनकी औसत पैदावार लगभग 5.5 से 7.0 टन प्रति हेक्टेयर है|
धान के खेत की तैयारी और बुवाई
धान की खेती मुख्य रूप से निचली भूमियों में की जाती है| साथ ही धान को ऊंची भूमियों और गहरे पानी में भी उगाया जाता है| धान उगाने की विभिन्न विधियों में से उत्तरी भारत के लिए धान सघनता पद्धति, एरोबिक धान पद्धति और रोपाई विधि अधिक महत्वपूर्ण है। अतः उपरोक्त तीनों विधियों का उल्लेख विस्तार से इस प्रकार है|

धान सघनता विधि (एस आर आई पद्धति)

1. इस पद्धति को सिस्टम ऑफ राइस इन्टेंसिफिकेशन या एस आर आई याधान सघनता पद्धति के नाम से जाना जाता है| इस पद्धति से धान उगाने के लिए पौध की रोपाई योग्य उम्र 8 से 10 दिन या अधिकतम 14 दिन संस्तुत की गई है| इस अवस्था की पौध को उखाड़ने और खेत में लगाने के बीच कम से कम समय होना चाहिए|
2. खेत की तैयारी परंपरागत तरीके से की जाती है| खेत में पानी खड़ा करके मिट्टी पलटने वाले हल या पडलर से 2 से 3 बार जुताई करके पाटा लगा देते हैं|
3. पौध की रोपाई 25 X 25 सेंटीमीटर अंतरण पर की जाती है एवं एक स्थान पर एक ही पौधा रोपा जाता है| इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि खेत में खड़ा हुआ पानी नहीं रखना है| खेत को हमेशा नमीयुक्त रखना आवश्यक है| बार-बार कुछ अंतराल पर हल्की सिंचाई करना तथा खेत को पानी रहित रखना पड़ता है| ताकि मिट्टी में पर्याप्त वायु संचार हो सके|
4. खरपतवार समस्या से निजात पाने के लिए हस्तचालित या शक्तिचालित ‘रोटेटिंग हो’ का प्रयोग संस्तुत किया गया है| इस विधि से खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ मिट्टी में वायु संचार भी बढ़ता है| जिससे कि जड़ों का विकास अच्छा होता है साथ ही खरपतवार मिट्टी में मिल जाने के बाद उसमे जैव-पदार्थ की मात्रा बढ़ाते हैं, जो कि लाभदायक जीवों की संख्या में वृद्धि करता है|
5. धान सघनता पद्धति में पोषक तत्वों की पूर्ति जैविक स्रोतों जैसे कम्पोस्ट, गोबर की खाद और हरी खाद आदि से की जानी चाहिए| यदि जैविक स्रोत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हों तो आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति उर्वरकों और जैविक स्रोतों दोनों के एकीकृत प्रयोग द्वारा की जा सकती है|
6. इस विधि से धान उगाने के अनेक लाभ संज्ञान में आए हैं| उदाहरणार्थ परंपरागत तरीके से धान उगाने की तुलना में धान सघनता पद्धति से उगाने पर 1.5 से 3.0 गुनी तक अधिक पैदावार दर्ज की गई है| साथ ही परंपरागत धान पद्धति से धान उगाने की तुलना में धान सघनता पद्धति में 30 से 40 प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता होती है|

एरोबिक धान

1. यह कम पानी उपलब्ध होने की परिस्थिति में धान उगाने की एक आधुनिक विधि है| अनुसंधान परीक्षणों से ज्ञात हुआ है, कि एरोबिक धान की जल-उत्पादकता प्रचलित विधि से धान उगाने की तुलना में अधिक होती है| एरोबिक (वायवीय) विधि से धान उगाने के लिए अधिक पैदावार देने वाली संकर प्रजातियों की लेह रहित दशा में सीड ड्रिल या देसी हल से सीधे खेत में बुवाई करते हैं तथा गेहूं की भांति धान को उगाया जाता है| साथ ही आवश्यकतानुसार फसल में सिंचाई भी करते रहते हैं|
2. धान की कुछ संकर किस्में जैसे- अंजलि, प्रो एग्रो 6111, पी आर- 1160, पी आर एच- 10, पूसा 834, सुगंध- 5 आदि को एरोबिक पद्धति से सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है| पंक्तियों में देसी हल या सीड ड्रिल से बुवाई करने पर 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
3. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेंटीमीटर अधिक उपयुक्त पाई गई है| यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो फसल को पलेवा करने के बाद बोया जाए या बुवाई के तुरंत बाद एक हल्का पानी लगाना चाहिए| उत्तरी भारत में इसकी बुवाई का उपयुक्त समय जून का महीना है|
4. एरोबिक धान के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की संस्तुति की गई है| एक-तिहाई नाइट्रोजन और फॉस्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में डालना अति लाभकारी है| नाइट्रोजन की शेष दो-तिहाई मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर कल्ले बनते समय तथा पुष्पावस्था पर देना चाहिए|
5. नीम-लेपित यूरिया का प्रयोग करके धान में नाइट्रोजन की उपयोग क्षमता में वृद्धि की जा सकती है| फसल में बाली निकलने से लेकर पकने की अवस्था तक खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक होता है| शोध परिणामों से ज्ञात हुआ है कि प्रचलित धान उगाने की विधि की तुलना में एरोबिक धान में 40 से 45 प्रतिशत पानी की बचत होती है|
6. एरोबिक धान में प्रायः लौह तत्व की उपलब्धता की समस्या आ सकती है| लौह तत्व की कमी के लक्षण पौधों पर इस प्रकार हैं- पत्तियों की शिराओं के बीच पीलापन आना, धीरे-धीरे संपूर्ण पत्तियों का पीला हो जाना एवं अंततः पौधों के शेष भागों का पीला हो जाना आदि| जिस भूमि में लौह तत्व की कमी हो या फसल पर लौह तत्व की कमी प्रतीत हो तब 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट या फेरस चिलेट्स का घोल कल्ले फूटने के उपरांत 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़क देना चाहिए|
7. एरोबिक धान में खरपतवारों की बढ़वार भी प्रायः एक गंभीर समस्या होती है| बुवाई के 2 से 3 दिन के अंदर पेंडिमिथालिन 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कने पर खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है| बुवाई के 20 दिन बाद 2, 4- डी 0.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का छिड़काव चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए किया जा सकता है|
8. एरोबिक धान में सूत्रकृमियों (निमैटोड्स) द्वारा हानि की भी प्रबल संभावना बनी रहती है| इनके नियंत्रण के लिए कार्बोफ्युरॉन 3 प्रतिशत जी की 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा का प्रयोग करें| कार्बोफ्युरॉन को अंकुरण के 20 से 30 दिन बाद डालें, परन्तु डालते समय यह सुनिश्चित कर लें कि खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए|

धान की रोपाई विधि हेतु बीज की मात्रा और उपचार

रोपाई विधि हेतु बीज की मात्रा- बुवाई से पहले स्वस्थ बीजों की छंटनी कर लेनी चाहिए| इसके लिए 10 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग करते हैं| नमक का घोल बनाने के लिए 2.0 किलोग्राम सामान्य नमक 20 लीटर पानी में घोल लें एवं इस घोल में 30 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी तरह हिलाएं, इससे स्वस्थ और भारी बीज नीचे बैठ जाएंगे तथा थोथे एवं हल्के बीज ऊपर तैरने लगेंगे| इस तरह साफ व स्वस्थ छांटा हुआ 20 किलोग्राम बीज महीन दाने वाली किस्मों में तथा 25 किलोग्राम बीज मोटे दानों की किस्मों में एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए पौध तैयार करने के लिए पर्याप्त होता है|
उपचार- बीज उपचार के लिए 10 ग्राम बॉविस्टीन और 2.5 ग्राम पोसामाइसिन या 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लीन या 2.5 ग्राम एग्रीमाइसीन 10 लीटर पानी में घोल लें| अब 20 किलोग्राम छांटे हुए बीज को 25 लीटर उपरोक्त घोल में 24 घंटे के लिए रखें| इस उपचार से जड़ गलन, झोंका और पत्ती झुलसा रोग आदि बीमारियों के नियन्त्रण में सहायता मिलती है|

धान की नर्सरी की तैयारी


1. नर्सरी ऐसी भूमि में तैयार करनी चाहिए जो उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली व जल स्रोत के पास हो| एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लिए 1/10 हेक्टेयर (1000 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल में पौध तैयार करना पर्याप्त होता है|
2. धान की नर्सरी की बुवाई का सही समय वैसे तो विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है| लेकिन 15 मई से लेकर 20 जून तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त पाया गया है|
3. धान की नर्सरी भीगी विधि से पौध तैयार करने का तरीका उत्तरी भारत में अधिक प्रचलित है| इसके लिए खेत में पानी भरकर 2 से 3 बार जुताई करते हैं ताकि मिट्टी लेहयुक्त हो जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं| आखिरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें|
4. जब मिट्टी की सतह पर पानी न रहे तो खेत को 1.25 से 1.50 मीटर चौड़ी और सुविधाजनक लम्बी क्यारियों में बांट लें, ताकि बुवाई, निराई और सिंचाई की विभिन्न सस्य क्रियाएं आसानी से की जा सकें|
5. क्यारियां बनाने के बाद पौधशाला में 5 सेंटीमीटर ऊंचाई तक पानी भर दें तथा अंकुरित बीजों को समान रूप से क्यारियों में बिखेर दें|
6. पौधशाला के 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगभग 700 से 800 किलोग्राम गोबर की गली सड़ी खाद, 8 से 12 किलोग्राम यूरिया, 15 से 20 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 5 से 6 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश और 2 से 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से मिलाना चाहिए|
7. जिन क्षेत्रों में लौह तत्व की कमी के कारण हरिमाहीनता के लक्षण दिखाई दें, उन क्षेत्रों में 2 से 3 बार एक सप्ताह के अन्तराल पर 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करने से हरिमाहीनता की समस्या को रोका जा सकता है|
8. पौधशाला में 10 से 12 दिन बाद निराई अवश्य करें, यदि पौधशाला में अधिक खरपतवार होने की संभावना हो तो ब्युटाक्लोर 50 ई सी या बैन्थियोकार्ब नामक शाकनाशियों की 120 मिलीलीटर मात्रा 60 लीटर पानी में घोलकर 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में बुवाई के 4 से 5 दिन बाद खरपतवार उगने से पहले छिड़क दें|
9. पौधशाला में कीटों का प्रकोप होते ही थाइमेथोएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए|
10. सामान्यतः जब पौध 21 से 25 दिन पुरानी हो जाए तथा उसमें 5 से 6 पत्तियां निकल जाएं तो यह रोपाई के लिए उपयुक्त होती है| पौध उखाड़ने के एक दिन पहले नर्सरी में अच्छी तरह से पानी भर देना चाहिए, जिससे पौध को आसानी से उखाड़ा जा सके और साथ ही साथ पौध की जड़ों को भी कम नुकसान हो|
पौध की रोपाई
1. रोपाई के लिए पौध उखाड़ने से एक दिन पहले नर्सरी में पानी लगा दें तथा पौध उखाड़ते समय सावधानी रखें| पौधों की जड़ों को धोते समय नुकसान न होने दें और पौधों को काफी नीचे से पकड़ें, पौध की रोपाई पंक्तियों में करें|
2. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| एक स्थान पर 2 से 3 पौध ही लगाएं, इस प्रकार एक वर्ग मीटर में लगभग 50 पौधे होने चाहिए|

पोषक तत्व प्रबंधन

1. अधिक उपज और भूमि की उर्वरता शक्ति बनाये रखने के लिए हरी खाद या गोबर या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए| हरी खाद हेतु सनई या ढेंचा का प्रयोग किया गया हो तो नाइट्रोजन की मात्रा कम की जा सकती है, क्योंकि सनई या ढेंचे से लगभग 50 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|
2. उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, धान की बौनी किस्मों के लिए 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए|
3. बासमती किस्मों के लिए 100 से 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 से 50 किलोग्राम पोटाश और 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए|
4. संकर धान के लिए 130 से 140 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फॉस्फोरस, 50 से 60 किलोग्राम पोटाश और 25 से 30 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए|
5. यूरिया की पहली तिहाई मात्रा का प्रयोग रोपाई के 5 से 8 दिन बाद करें जब पौधे अच्छी तरह से जड़ पकड़ लें| दूसरी एक तिहाई यूरिया की मात्रा कल्ले फूटते समय (रोपाई के 25 से 30 दिन बाद) और शेष एक तिहाई हिस्सा फूल आने से पहले (रोपाई के 50 से 60 दिन बाद) खड़ी फसल में छिड़काव करके करें|
6. फास्फोरस की पूरी मात्रा सिंगल सुपर फास्फेट या डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) के द्वारा, पोटाश की भी पूरी मात्रा म्युरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा धान की रोपाई करने से पहले अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला देनी चाहिए|
7. यदि किसी कारणवश पौध रोपते समय जिंक सल्फेट खाद न डाला गया हो तो इसका छिड़काव भी किया जा सकता है| इसके लिए 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर 3 छिड़काव 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट + 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ करने चाहिए| पहला छिड़काव रोपाई के एक महीने बाद करें|
जल प्रबंधन
1. धान की फसल के लिए सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होना बहुत ही जरूरी है| सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर पानी खेत में खड़ा रहना अति लाभकारी होता है|
2. धान की चार अवस्थाओं- रोपाई, ब्यांत, बाली निकलते समय और दाने भरते समय खेत में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है| इन अवस्थाओं पर खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी अवश्य भरा रहना चाहिए|
3. कटाई से 15 दिन पहले खेत से पानी निकाल कर सिंचाई बंद कर देनी चाहिए|

खरपतवार रोकथाम

1. धान के खरतपवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पेडीवीडर का प्रयोग किया जा सकता है|
2. रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए, धान के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ शाकनाशियों का उल्लेख निचे सरणी में किया गया है|

3. खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए|


कीट रोकथाम

पौध फुदके- पौध फुदके भूरे, काले और सफेद रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं जिनके शिशु एवं वयस्क दोनों ही पौधों के तने और पर्णाच्छद से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं|
रोकथाम
1. फसल पर इस कीट की निगरानी बहुत जरूरी है, क्योंकि फुदके तने पर होते हैं और पत्तों पर नहीं दिखते|
2. इनकी निगरानी के लिए प्रकाश-प्रपंच (लाइट ट्रैप) का प्रयोग भी किया जा सकता है|
3. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल, 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या थायोमेथोक्ज़म 25 डब्ल्यू पी, 1 ग्राम प्रति 5 लीटर या बी पी एम सी 50 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या कार्बरिल 50 डब्ल्यू पी, 2 ग्राम प्रति लीटर या बुप्रोफेज़िन 25 एस सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें| छिड़काव करते समय नोज़ल पौधों के तनों पर रखें|
4. दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्युरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भी इस्तेमाल कर सकते हैं|
तना छेदक- तना छेदक की केवल सुंडियां ही फसल को हानि पहुंचाती हैं और वयस्क पतंगे फूलों के शहद आदि पर निर्वाह करते हैं| बाली आने से पहले इनके हानि के लक्षणों को ‘डेड-हार्ट’ एवं बाली आने के बाद ‘सफेद बाली’ के नाम से जाना जाता है|
रोकथाम
1. प्रकाश प्रपंच के उपयोग से तना छेदक की संख्या पर निगरानी रखें| निगरानी के लिए फेरोमोन प्रपंच 5 प्रति हेक्टेयर पीला तना छेदक के लिए लगाएं|
2. रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 2 से 6 सप्ताह तक छोड़ें|
3. अधिक प्रकोप होने पर दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्युरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस पी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें|
पत्ता लपेटक- इस कीट की भी केवल सुंडियां ही फसल को हानि पहुंचाती हैं| जबकि वयस्क पतंगे फूलों के शहद पर जिंदा रहते हैं| सूंडी पत्तों के दोनों किनारों को सिलकर इनके हरे पदार्थ को खा जाती है| अधिक प्रकोप की अवस्था में फसल झुलसी नजर आती है|
रोकथाम
1. प्रकाश-प्रपंच के प्रयोग से कीट की निगरानी करें|
2. ट्राइकोग्रामा काइलोनिस (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 30 दिन रोपाई उपरांत 3 से 4 सप्ताह तक छोड़ें|
3. अधिक प्रकोप होने पर क्विनलफॉस 25 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस पी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या फ्लूबैंडिमाइड 39.35 एस सी 1 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी का छिड़काव करें या दानेदार कीटनाशी कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग भी कर सकते हैं|
हिस्पा भृंग- नीले-काले रंग के वयस्क भुंग पत्तों के हरे पदार्थ को खाकर सीढ़ीनुमा सफेद लकीरें बनाते हैं| जबकि सुंडियां पत्तों के अंदर भूरे रंग की सुरंगें बना देती हैं|
रोकथाम- अधिक प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या क्विनलफॉस 25 ई सी, 3 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें या कार्बारिल धूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें|
गंधी बग- यह कीट खेत में दुर्गन्ध फैलाता है, अतः इसे गंधी बग कहा जाता है| इसके शिशु व वयस्क दोनों ही दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर इन्हें खाली कर देते हैं| ऐसे दानों पर काला निशान भी बन जाता है|
रोकथाम- प्रकोप दिखाई देने पर क्विनलफॉस 25 ई सी 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें या कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुरकाव करें|
सैनिक कीट- इस कीट की केवल सुंडियां ही फसल को नुकसान करती हैं, जबकि पतंगे फूलों से रस चूसते हैं| सुंडियां (झुंड में पाई जाने वाली सुंडी) नर्सरी में पौध को इस तरह कुतर कर खा जाती हैं जैसे इन्हें जानवरों ने चर लिया हो|
रोकथाम
1. प्रकाश-प्रपंच का प्रयोग कर कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें|
2. प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ई सी, 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें या कार्बारिल या मैलाथियान धूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुरकाव करें|
ग्रास हॉपर- इस कीट के फुदकने वाले शिशु और वयस्क पत्तों को इस तरह खाते हैं जैसे कि पशु चर गए हों|
रोकथाम
1. गर्मी में धान के खेतों की मेड़ों की खुरचाई करें ताकि इस कीट के अंडे नष्ट हो जाए|
2. इस कीट की साल में एक ही पीढ़ी होती है और अंडे नष्ट कर देने से इसका प्रकोप काफी कम हो जाता है|
3. प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ई सी, 3 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें या कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का बुरकाव करें|
उपरोक्त कीटों हेतु संक्षिप्त सार
अलग-अलग कीटों की रोकथाम पर नजर डालें तो यह सार निकलता है, कि यदि किसान भाई निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें तो कीड़ों के प्रकोप को कम करने में काफी मदद मिलेगी, जैसे-
1. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें और मेड़ों की खुरचाई करके घास खड़ी न रहने दें|
2. रोपाई से पहले पौधों के शीर्ष को काटकर नष्ट कर दें|
3. नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचते हुए खाद का संतुलित प्रयोग करें|
4. खरपतवारों को नियंत्रित करते रहें|
5. खेतों को लगातार पानी से भरकर न रखें और पानी सूखने के बाद ही दोबारा सिंचाई करें|
6. प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर कीटों की निगरानी करें|
7. फसल पर कीटों की निगरानी करते रहें और आर्थिक दहलीज स्तर पर ही कीटनाशियों का प्रयोग सही मात्रा में ही करें, अधिक मात्रा में प्रयोग करने से कोई फायदा नहीं मिलता|
8. कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे मकड़ियों का संरक्षण करें और जहां इनकी संख्या ज्यादा हो वहां कीटनाशी न छिड़कें|
9. दानेदार कीटनाशी लाभकारी कीटों को अपेक्षाकृत कम नुकसान पहुंचाते हैं|

रोग रोकथाम

ब्लास्ट, बदरा या झोंका रोग- यह रोग फफूंद से फैलता है| पौधों के सभी भाग इस बीमारी द्वारा प्रभावित होते हैं| वृद्धि अवस्था में यह रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देता है| इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के और बीच वाला भाग राख के रंग का होता है| रोग के तेजी से आक्रमण होने पर बाली का आधार भी ग्रसित हो जाता है, जिससे इस अवस्था को ग्रीवा गलन कहते हैं| जिसमें बाली आधार से मुड़कर लटक जाती हैं| परिणाम स्वरूप दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है|
रोकथाम
1. ट्राइसायक्लेजोल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित बीज बोएं|
2. जुलाई के प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें, देर से रोपाई करने पर झोंका रोग के लगने की संभावना बढ़ जाती है|
3. यदि पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगें तो कार्बेन्डाजिम 1000 या ट्राइसायक्लेजोल 500 ग्राम का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें|
पत्ती का जीवाणु झुलसा रोग- यह बीमारी जीवाणु के द्वारा होती है, पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह बीमारी कभी भी हो सकती है| इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं| संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है, इसलिए बालियां दानों रहित रह जाती है|
रोकथाम
1. उपचारित बीज का प्रयोग करें, इसके लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 2.5 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबोएं|
2. इस बीमारी के लगने की अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग रोकथाम तक बंद कर दें|
3. जिस खेत में बीमारी लगी हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें, इससे रोग के फैलने की आशंका होती है, साथ ही प्रकोप वाले खेत को भी पानी न दें|
4. खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए, तो बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है|
5. बीमारी के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 एवं 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन से चार बार छिड़काव करें| पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर और बाद में आवश्यकतानुसार 10 दिन के अन्तराल पर करें|
शीथ ब्लाइट- यह बीमारी फफूंद के द्वारा होती है| इसके प्रकोप से पत्ती के शीथ पर 2 से 3 सेंटीमीटर लम्बे हरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो कि बाद में चलकर भूसे के रंग के हो जाते हैं| धब्बों के चारों तरफ बैंगनी रंग की पतली धारी बन जाती है|
रोकथाम- कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या शीथमार- 3, 1.5 लीटर या हेक्साकोनाजोल 1000 मिलीलीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
खैरा रोग- यह बीमारी जस्ते की कमी के कारण होती है| इसके लगने पर निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं एवं बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवां धब्बे उभरने लगते हैं| रोग की तीव्र अवस्था में रोग ग्रसित पत्तियां सूखने लगती हैं| कल्ले कम निकलते हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है|
रोकथाम
1. यह बीमारी न लगे इसके लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए|
2. बीमारी लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम चूना 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें| अगर रोकथाम न हो तो 10 दिन बाद पुनः छिड़काव करें|

कटाई एवं मड़ाई

बालियां निकलने के लगभग एक माह बाद सभी किस्में पक जाती हैं| कटाई के लिए जब 80 प्रतिशत बालियों में 80 प्रतिशत दाने पक जाएं तथा उनमें नमी 20 प्रतिशत हो, वह समय उपयुक्त होता है| कटाई दरांती से जमीन की सतह पर व ऊसर भूमियों में भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए| मड़ाई साधारणतया हाथ से पीटकर की जाती है|
शक्ति चालित श्रेसर का उपयोग भी बड़े किसान मड़ाई के लिए करते हैं| कम्बाईन के द्वारा कटाई और मड़ाई का कार्य एक साथ हो जाता है| मड़ाई के बाद दानों की सफाई कर लेते हैं| सफाई के बाद धान के दानों को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए| भण्डारण से पूर्व दानों को 10 प्रतिशत नमी तक सुखा लेते हैं|
पैदावार
समस्त उपर्युक्त सस्य क्रियाओं एवं उचित किस्म अपनाने पर शीघ्र पकने वाली किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 40 से 50 क्विंटल, मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों से प्रति हेक्टेयर उपज 50 से 60 क्विंटल एवं संकर धान से प्रति हेक्टेयर औसत उपज 60 से 70 क्विंटल प्राप्त होती है|
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

PLEASE CONTACT US FOR ANY INFORMATION THAT YOU MAY NEED.PLEASE CONTACT US FOR ANY INFORMATION THAT YOU MAY NEED.


INFO@UNNATINDIA.IN | WWW.UNNATINDIA.IN | +91-9540019555


INFO@UNNATINDIA.IN|WWW.UNNATINDIA.IN|+91-9540019555